Mumbai CEO: Mumbai CEO ने एक महिला को जॉइन करने का मौका दिया था, लेकिन महिला ने एक शर्त रख दी। महिला ने नौकरी स्वीकार करने से पहले अपने पति से मिलने की बात की, जिसे Mumbai CEO ने तुरंत नकार दिया। इस घटना ने एक बार फिर समाज में महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके फैसलों पर सवाल खड़ा किया है।
विनोद चेंधिल, जो कि स्वस्थ नूडल ब्रांड “नेचुरली योर” के संस्थापक और Mumbai CEO हैं, ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर इस घटना के बारे में जानकारी दी। चेंधिल के अनुसार, महिला को एक सीनियर पोजीशन के लिए चुना गया था, और जब उसने नौकरी स्वीकार करने से पहले अपने पति से मिलकर बात करने की शर्त रखी, तो चेंधिल ने इसे एक बड़ा “लाल झंडा” मानते हुए उसे तुरंत रिजेक्ट कर दिया।
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महिला ने कहा कि वह अपने पति से मिलकर यह तय करना चाहती है कि कंपनी उसके लिए सही है या नहीं। चेंधिल ने इसे महिला के फैसले में पूरी तरह से पति पर निर्भर होने का संकेत माना। उनका मानना था कि एक सीनियर पोजीशन पर काम करने वाली महिला को अपने पति से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
चेंधिल ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “वह चाहती है कि उसका पति यह तय करे कि वह हमारे साथ काम करेगी या नहीं। क्यों एक स्वतंत्र महिला को इस पर अपने पति से अनुमति लेनी चाहिए?” उनके अनुसार, यह एक संकेत था कि महिला अपने फैसले खुद नहीं ले सकती, और अगर वह एक सीनियर पोजीशन पर काम करेगी तो वह किसी भी महत्वपूर्ण फैसले को कैसे ले पाएगी?
चेंधिल ने कहा कि यह सिर्फ एक इंटर्न की तरह नहीं था, जहां किसी वरिष्ठ व्यक्ति से सलाह ली जाती हो। यह एक सीनियर पोजीशन के लिए बिल्कुल अनुपयुक्त था, और इस वजह से उन्हें महिला को रिजेक्ट करना पड़ा।
चेंधिल की पोस्ट पर लोगों की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली थीं। कुछ लोगों ने चेंधिल के फैसले का समर्थन किया, और कहा कि सीनियर पोजीशन के लिए इस तरह के व्यवहार का कोई स्थान नहीं है। एक यूज़र ने टिप्पणी की, “मैंने कभी इंटर्न स्तर के कैंडिडेट्स के माता-पिता से बात की है, ताकि उन्हें सुरक्षित महसूस कराया जा सके, लेकिन सीनियर पोजीशन के लिए ऐसा करना अजीब होगा। यह सही निर्णय था।”
वहीं, कुछ लोग इस फैसले से सहमत नहीं थे। साक्षी शुक्ला, जो सैटर्न स्टूडियोज की संस्थापक हैं, ने कहा कि यह महिला का निर्णय नहीं बल्कि समाज की संरचना का मुद्दा है। उन्होंने कहा, “यह एक लाल झंडा नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि परिवार उसे नियंत्रित कर रहा है कि वह कहां काम करेगी। आपको एक मजबूत कैंडिडेट को इस वजह से रिजेक्ट नहीं करना चाहिए।”
चेंधिल ने इस पर अपनी राय दी और कहा कि उनका फैसला केवल इस वजह से नहीं था, बल्कि इंटरव्यू के दौरान और भी कई “लाल झंडे” सामने आए थे। उनका मानना था कि महिला का यह व्यवहार सीनियर पोजीशन के लिए उपयुक्त नहीं था और इस कारण से उसे रिजेक्ट किया गया।
यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या यह महिला का व्यक्तिगत मामला था, या यह उस समाज की समस्या है, जहां महिलाओं को अपने करियर और फैसलों में स्वतंत्रता नहीं दी जाती है। क्या चेंधिल ने सही किया, या वह महिला को सिर्फ एक गलत वजह से रिजेक्ट कर रहे थे?
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि महिलाओं को अपने करियर के बारे में स्वतंत्र रूप से फैसले लेने का अधिकार होना चाहिए। समाज में महिलाओं के लिए निर्णय लेने की स्वतंत्रता को लेकर कई बार सवाल उठते हैं, और इस प्रकार की घटनाएं यह साबित करती हैं कि महिलाओं को इस मामले में अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
महिलाओं को अपने जीवन और करियर के फैसले खुद लेने का अधिकार होना चाहिए, और समाज को इस पर विचार करना होगा कि वह महिलाओं को कितनी स्वतंत्रता देता है। यह जरूरी है कि महिलाओं को किसी भी फैसले में परिवार या समाज के दबाव से मुक्त रखा जाए, ताकि वे स्वतंत्र रूप से अपने सपनों को पूरा कर सकें।
यह घटना एक ओर दिखाती है कि समाज में बदलाव की जरूरत है, ताकि महिलाएं अपने जीवन के निर्णय स्वतंत्र रूप से ले सकें। महिलाओं को नौकरी के फैसले लेने की पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, और हमें समाज में ऐसे बदलाव की ओर बढ़ना चाहिए जहां महिलाओं को अपने निर्णय खुद लेने का पूरा अधिकार हो।
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इस घटना को देखकर एक महिला के मन में कई तरह के विचार उठ सकते हैं। एक ओर, वह समझ सकती है कि समाज में आज भी कुछ पारंपरिक सोचें मौजूद हैं, जो महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करती हैं। महिला का अपने पति से मिलकर निर्णय लेने का कदम यह दर्शाता है कि उसे व्यक्तिगत रूप से अपने फैसले लेने का पूरा अधिकार नहीं मिल रहा है। यह सोच समाज में बदलाव की आवश्यकता को उजागर करती है, ताकि महिलाएं अपने करियर और जीवन के फैसले स्वतंत्र रूप से ले सकें।
दूसरी ओर, वह शायद यह भी सोचती है कि क्या यह उचित है कि एक महिला को अपने फैसले पर दबाव महसूस करना पड़े। उसे महसूस हो सकता है कि यह स्थिति महिलाओं के लिए एक बड़े "लाल झंडे" की तरह है, जो उनकी स्वतंत्रता को बाधित करता है। शायद वह सोचें कि महिला को इस निर्णय का अधिकार होना चाहिए कि वह कहां काम करेगी और किसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाएगी।
यह खबर समाज में महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके फैसलों को लेकर एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करती है, जिसे हमें गंभीरता से सोचना चाहिए।