Pahalgam Terror Attack
Pahalgam Terror Attack: 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के बाइसारन घाटी में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस खूबसूरत पर्यटन स्थल पर दोपहर करीब 2:50 बजे चार से सात आतंकियों ने अचानक हमला कर दिया, जिसमें 28 लोगों की मौत हो गई और 20 से अधिक घायल हो गए। हमलावरों ने M4 कार्बाइन और AK-47 जैसी आधुनिक हथियारों से लैस होकर निर्दोष पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। इस हमले की जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली है, जो पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा का एक फ्रंट संगठन माना जाता है।
हमले के दौरान आतंकियों ने पर्यटकों से उनके नाम और धर्म पूछे और कुछ को इस्लामी कलिमा पढ़ने के लिए मजबूर किया। स्थानीय शिया मुस्लिम युवक सैयद आदिल हुसैन शाह ने बहादुरी दिखाते हुए एक आतंकी से बंदूक छीनने की कोशिश की, लेकिन वे शहीद हो गए। स्थानीय पोनी-वालों ने भी घायलों की मदद की और उन्हें सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हमले की कड़ी निंदा की और दोषियों को “धरती के अंतिम छोर तक” खोजकर सजा देने की बात कही। भारत ने पाकिस्तान के साथ अपने राजनयिक संबंधों को घटाया, रक्षा अधिकारियों को वापस बुलाया और सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया।
जम्मू-कश्मीर सरकार ने मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये और गंभीर रूप से घायलों को 2 लाख रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की। घायलों को सर्वोत्तम चिकित्सा सुविधा प्रदान की जा रही है।
इस हमले के बाद कश्मीर में पर्यटन पर गहरा असर पड़ा है। लोगों ने अपनी यात्राएं रद्द कर दी हैं और घाटी में डर का माहौल है। सरकार ने अमरनाथ यात्रा से पहले सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा करने और बाइसारन घाटी में स्थायी सेना और अर्धसैनिक बलों की तैनाती पर विचार करने का निर्णय लिया है।
यह हमला 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद सबसे बड़ा आतंकी हमला माना जा रहा है। इसने न केवल कश्मीर की शांति को चुनौती दी है, बल्कि पूरे देश को एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होने का संदेश दिया है।
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। बाइसारन घाटी में हुए इस बर्बर हमले में 28 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई, दर्जनों घायल हुए और देशभर में आक्रोश की लहर दौड़ गई। इस हमले के न केवल मानवीय बल्कि राजनीतिक और सामरिक असर भी दूरगामी साबित हो सकते हैं।
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बाइसारन घाटी में हुए आतंकी हमले ने न केवल 28 निर्दोष जिंदगियों को छीन लिया, बल्कि देश की आत्मा को झकझोर दिया है। इस हमले को केवल एक आतंकी वारदात कह देना शायद इसकी गंभीरता को कम करके आंकना होगा। ऐसे समय में हमने बातचीत की राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के जानकार डॉ. मयंक शर्मा से, जिन्होंने इस हमले को सिर्फ एक सुरक्षा चूक नहीं, बल्कि “इंसानियत पर हमला” करार दिया।
डॉ. शर्मा कहते हैं: “जो हुआ, वह बेहद दुखद है। पर बड़ा सवाल ये है — क्या हम इस त्रासदी को सच में याद रखेंगे? और अगर रखेंगे भी, तो कैसे? क्या हमें केवल मृतकों की संख्या याद रह जाएगी या हम उन कारणों की तह तक जाएंगे जिनसे यह हमला हुआ?”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आतंकियों का मकसद केवल दहशत फैलाना नहीं था, बल्कि एक गहरी साजिश के तहत समाज को धार्मिक आधार पर बाँटना भी था।
“अब वक्त आ गया है कि हम हिन्दू-मुस्लिम नहीं, इंसानियत के आधार पर एकजुट हों। आतंकवाद धर्म नहीं देखता, उसकी गोली न हिन्दू पहचानती है, न मुसलमान।”
सवाल उठता है – क्या यह हमला किसी राजनीतिक गतिविधि का परिणाम था? या हमारी सुरक्षा प्रणाली में चूक?
डॉ. शर्मा मानते हैं कि इस हमले ने एक बार फिर हमारी खुफिया व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर किया है।
“जहाँ हम दुनिया को यह भरोसा दिलाते हैं कि भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र है, वहीं ये घटनाएं हमें कटघरे में खड़ा कर देती हैं।”
डॉ. शर्मा ने यह भी कहा कि “अब समय है कि हम लाशों पर राजनीति करना बंद करें। न हिन्दू धर्म इसकी इजाज़त देता है, न इस्लाम। जो लोग कहते हैं कि कश्मीर को बायकॉट करो, वे नहीं समझते कि बेरोजगारी और सामाजिक अलगाव आतंकवाद को और बढ़ावा देते हैं।”
उन्होंने युवाओं से अपील की: “आपके बच्चों का भविष्य आपके हाथों में है। उन्हें प्रेम सिखाइए, नफरत नहीं। यही असली देशभक्ति है, यही मानवता की पुकार है।”
डॉ. मयंक शर्मा की इस बात से हम सबको सीख लेनी चाहिए कि अब समय है – धर्म से ऊपर उठकर, राजनीतिक शोर से बाहर निकलकर, इंसानियत के पक्ष में खड़ा होने का। अगर हमें सच में आतंक के खिलाफ लड़ाई जीतनी है, तो वो बंदूक से नहीं, एकता से होगी।
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